|
|
|
|
::: وساوس
:::
|
حملتُ إلى كفها
وسوساتي
وأقنعتُ إبهامها
أن يباركَ كفي
وأن تستفيقَ
الأصابعُ
تلك المحناةُ
بالهمسِ
والوجدِ..
والرعشاتِ الحبيبةِ
بين يديَّ
تتسللَ توقٌ
يعذبهُ البعدُ
ما بيننا
فاقترحتُ على دمعها
أن يمرَ
على شاطئِ القلبِ
كي يطفئَ
الظمأ المتأججَ
للزقزات الحبيبةِ
مرت طيوفٌ
مضى زمنٌ
لم أحدق بأعماقها
فاستحالت رؤاها
رماداً
يُعطرُ حلمي
إلى لمسةٍ من يدها
تأجج بين الجوانحِ
مشتعلاً...
شوقها
واستفاضَ الحنينُ المعتقُ
للمسةِ المشتهاةِ
ولم أكتشفْ
حُرقةَ اللونِ والصوتِ
إلا بعيد اللقاءِ البعيدِ
ولم أستفق
ذات وجدٍ
سوى لحظتين
فاحترقت لوعتي
وانحنيتُ
أقبّلَ رملاً
يعانقُ خطوَ الحبيبةِ
والظلَّ...
أملأ كفي
بما فاض تحت خطاها
خذيني إلى آخر الشوقِ
يامشتهاةُ
خذيني..
أعفرُ خديَّ
أسفحُ أحلاميَ الضائعاتِ
طويلاُ
وأقرأ حزني
وحزنكِ
والآخرين المذادينَ
عن همسةِ الوردِ
بالبعدِ... والصدِ
يا وردتي...
هل تجيئينَ
شامخةً
بالودادِ الجميل
المعطرِ بالسعدِ...
والأنجم الزُهرِ..
والوجدِ..؟!
يا وردتي..
يا هواي
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
59 |
عدد القراءات |
0 |
عدد مرات الاستماع |
0 |
عدد التحميلات |
5.0 �� 5 |
نتائج التقييم |
|
|
|
|
|
|
البحث عن قصيدة |
|
|
|
|
|
|
|
|
البحث عن شاعر |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
47482 |
عدد القصائد |
501 |
عدد الشعراء |
1690427 |
عــدد الــــزوار |
4 |
المتواجدين حالياُ |
|
|
|
|
|